चाचा-चाची बने थे हैवान
मुंबई : उत्तरप्रदेश के जमुई जिले के सोनो इलाके में गत २२ दिसंबर को ७ साल की बच्चे की हत्या का मामला सामने आया था। उस मामले में बाद में पता चला था कि बच्चे का हत्यारा उसका अपना सगा चाचा था, जो उस मासूम के लिए पिता तुल्य था। जिसने बच्चे को कभी गोद में खिलाया भी होगा। बच्चा उसके साथ भी खुद को उतना ही सुरक्षित महसूस करता रहा होगा, जितना, अपने माता-पिता के साथ, मगर अफसोस ये कि वो चाचा हैवान निकला। उसने तांत्रिक के कहने पर बच्चे की बलि चढ़ा दी थी। विज्ञान के इस युग में अब भी लोग फिल्मी या किताबी कहानियों और अंधविश्वासों पर यकीन करते हैं। ऐसा ही एक मामला बीते वर्ष २०२० के दिवाली के दिन उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में सामने आया था, जहां शादी के दो दशक बीतने के बाद भी जब दंपति को कोई संतान नहीं हुई तो उन्होंने टोना-टोटका शुरू किया। इसमें काला जादू की किताब भी पढ़ी, जिसमें लिखा था कि अमावस की रात को बच्ची का कलेजा कच्चा खाया जाए तो उसको संतान हो जाएगी। बस फिर क्या था दंपति ने पड़ोसी की ६ साल की बच्ची की बलि देने की योजना बना डाली। उन्होंने इस अनैतिक एवं मानवता को शर्मसार करनेवाले कांड के लिए अपने भतीजों को भी साथ मिला लिया। इस तरह तंत्र-मंत्र से संतान सुख पाने के भ्रम में उन दोनों ने खुद अपनी और दो भतीजों की जिंदगी जहन्नुम बना ली थी।
वर्ष २०२० की दीवाली की रात यानी १४ नवंबर को जब देश के ज्यादातर लोग सुख-संपत्ति की चाह में मां महालक्ष्मी की उपासना कर रहे थे, उसी दौरान कानपुर के घाटमपुर गांव में एक सात साल की मासूम कुछ अंधविश्वासी और मानसिक रूप से बीमार लोगों की हैवानियत का शिकार हो रही थी। लोगों को खासकर खुद बच्ची के मां-बाप को इसकी खबर तब लगी जब सब-कुछ खत्म हो गया। बच्ची का क्षत-विक्षत शव गांव के काली मंदिर में नीम के पेड़ के नीचे मिला था। उसका गला कटा हुआ था, सिर फूटा था, दिल, किडनी और गुर्दा सब गायब था। मृतका के शरीर पर कपड़े नहीं थे। पास में ही खून से सनी उसकी चप्पलें पड़ी थीं। पोस्टमॉर्टम में पता चला की बच्ची के साथ गैंगरेप किया गया था और उसके शरीर के कई अंग भी निकाले गए थे। पुलिस और ग्रामीण हैरान थे कि ये मामला नरबलि का है या मानव अंगों की चोरी का। लेकिन बाद में पता चला कि इस दर्दनाक कांड का मास्टरमाइंड कोई और नहीं बल्कि मासूम बच्ची का पड़ोसी ही था, जिसने औलाद की चाह में अपने ही भतीजे से मासूम बच्ची की बलि दिलवा दी। इस दिल दहला देनेवाले कांड में आरोपी की पत्नी ने भी पूरा साथ दिया। पति-पत्नी ने काले जादू व तंत्र-मंत्र के चक्कर में आकर बच्ची की हत्या करवा दी।
दरअसल पीड़ित परिवार के पड़ोस में रहने वाले परशुराम की शादी के २१ साल हो गए थे। परशुराम और सुनैना की शादी १९९९ में हुई थी। उन्होंने संतान के लिए इलाज से लेकर मंदिर-मस्जिद तक माथा टेका लेकिन उनको अपनी कोई औलाद नहीं हुई। दंपति ने तंत्र-मंत्र के चक्कर में पड़कर बच्ची की बलि देने की प्लानिंग बनाई। दंपति ने यह सब गुप्त रूप से करने की योजना बनाई। उन्होंने रेलवे स्टेशन से एक तंत्र-मंत्र यानी काले जादू की किताब खरीदी थी। इसी किताब को पढ़कर दंपति खौफनाक वारदात को अंजाम दिया। इस किताब में संतान प्राप्ति के लिए दिवाली की रात को मुफीद बताया गया था। किताब में लिखा गया था कि दिवाली की रात बच्चे का दिल निकालकर खाने से संतान की प्राप्ति होती है। इसलिए आरोपियों ने बच्चे की बलि देने और उसका कलेजा खाने की योजना बनाई। इस कार्य के लिए उन्होंने अपने भतीजे अंकुर और उसके दोस्त वीरेंद्र को पैसों का लालच दिया। अंकुर और वीरेंद्र ने पड़ोसी के ६ साल की बेटी के अपहरण की योजना बनाई और और वे योजना को आसानी से अंजाम देने में सफल भी हुए। जिस ६ वर्षीय मासूम को अंकुर ने अगवा किया था, वह मासूम उसे भाई कहकर बुलाती थी। इसी विश्वास के साथ वह अंकुर भईया के साथ दिवाली की रात चली गई थी लेकिन बाद में अंकुर और उसके दोस्त ने मासूम को अपनी हवस और हैवानियत का शिकार बना डाला, जब वो गैंगरेप कर रहे थे तभी मासूम बच्ची ने दम तोड़ दिया। बाद में उन दरिंदों ने एक-एक करके बच्ची के ऑर्गन्स काट कर निकाल लिए। नरपिशाचों ने मासूम का कलेजा शराब से साफ किया और दंपति को दिया, जिसे दंपति ने कच्चा ही निगल लिया था।
घटनावाली रात बच्ची अंकुर के साथ जाती दिखी थी इसलिए पुलिस ने अंकूर को हिरासत में लिया लेकिन पहले तो वह पुलिस को गुमराह करता रहा पर बाद में वह टूट गया और उसने पूरा सच बता दिया। अंकुर और वीरेंद्र ने शराब के नशे में धुत होकर बच्ची को चिप्स दिलाने के बहाने अपने साथ उठाकर ले गए। उन दरिंदों ने पहले बच्ची को अपनी हवस का शिकार बनाया और बाद में उसकी हत्या करके उसका अंग निकाल कर अपने चाचा-चाची को दे दिया था। दूसरी ओर जब देर रात तक बच्ची घर नहीं पहुंची तो घरवालों ने उसे ढूंढ़ना शुरू किया और फिर उसकी लाश काली मंदिर के पास मिली थी। अंकुर ने बताया कि उसके चाचा-चाची ने पहले बच्ची के लीवर का आधा हिस्सा कुत्ते को खिलाया और बाद में बचा हुआ हिस्सा दोनों ने मिलकर खा लिया था।
जमुई में तूफानी यादव ने अपने चचेरे भाई कारू यादव के उकसावे और तांत्रिक जनार्दन गिरी के झांसे में आकर सात साल के अपने सगे भतीजे का गला तलवार से काट दिया था। वह जीवन में पेश आ रही परेशानियों से छुटकारा पाना चाहता था। जबकि घाटमपुर में परशुराम और सुनैना ने पड़ोसी की ६ वर्ष की मासूम बच्ची की बलि चढ़ाकर अपने घर में बच्चों की किलकारी सुनने का सपना देखा था। अपने सपनों को साकार करने के लिए इन सभी ने नृशंसता की सारी हदें तोड़ दी थीं।