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मुंबई : महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की तारीख घोषित हो चुकी है। सियासी गलियारों में इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी-शिवसेना गठबंधन कितना मजबूत साबित होगा। यह गठबंधन बना भी रहेगा या नहीं। शिवसेना नेता संजय राउत का मानना है कि सीट शेयरिंग की बात नॉन स्टॉप डांडिया है। आदित्य ठाकरे को लेकर भी बहस जारी है। 

बीजेपी और शिवसेना के बीच सीट शेयरिंग का मामला कहां पर फंसा है?

मामला फंसा नहीं है। जैसे नवरात्र में डांडिया चलता है और कुछ जगहों पर नॉन स्टॉप डांडिया चलता है, सीट शेयरिंग की बात भी नॉन स्टॉप डांडिया है। इसमें दोनों कपल जमकर डांडिया खेलते हैं। देखने वाली बात है कि डिस्कशन में कौन पहले थकता है। सीट बंटवारा आसान नहीं होता।

पिछले विधानसभा चुनाव में आप खुद को बड़ा पार्टनर मानते थे और बीजेपी से ज्यादा सीटें मांग रहे थे। अब जूनियर पार्टनर बनने को तैयार हैं। ऐसा क्या हुआ?

बात जूनियर पार्टनर की नहीं है। जब लोकसभा चुनाव में गठबंधन हुआ था, तब अमित शाह, देवेंद्र फडणवीस और उद्धव ठाकरे ने तय किया था कि 50 -50 पर्सेंट सीट शेयरिंग होगी। लेकिन चुनाव के बाद बीजेपी को इतना बड़ा यश मिल गया तो थोड़ा बहुत इधर-उधर चलता है। यह शिवसेना का टेंपररी फेज है।

तो लोकसभा चुनाव के नतीजों का रिश्तों में फर्क पड़ा है?

गठबंधन शिवसेना-बीजेपी दोनों की मजबूरी है। महाराष्ट्र में वोट ना बंटे, यह दोनों की जरूरत है।

क्या ज्यादा मजबूरी शिवसेना की है और क्या शिवसेना बीजेपी के प्रभाव को मान चुकी है?

मराठी में एक कहावत है जिसका मतलब है कि सह भी नहीं सकते और कह भी नहीं सकते। यही देश की स्थिति है। उसमें फिर इतने साल का हमारा रिश्ता रहा है तो हम चाहते हैं कि रिश्ता ना टूटे।

क्या शिवसेना को भी पीएम मोदी के नाम का सहारा है?

मोदी देश के पीएम हैं। एक वक्त में बाला साहेब ठाकरे सबसे बड़े नेता थे। उनके नाम से बीजेपी को भी फायदा होता था। उनके नाम से बीजेपी महाराष्ट्र में आगे बढ़ गई। आज बालासाहेब नहीं हैं और आज मोदी बड़े नेता हैं। अब अगर डॉनल्ड ट्रंप को भी मोदी का सहारा लगता है तो इंडिया में भी लगना चाहिए।

क्या बीजेपी और शिवसेना के बीच सीएम और डेप्युटी सीएम का फॉर्म्युला तय हो गया है?

इस बारे में अभी कोई चर्चा नहीं होगी, चाहे कोई कुछ भी बोले। यह सब चर्चा चुनाव के बाद होगी।

आदित्य ठाकरे अगर सीएम या डेप्युटी सीएम बनते हैं तो क्या उनका कम अनुभव आड़े नहीं आएगा?

किसने कहा कि कम अनुभव है। देवेंद्र फडणवीस जब सीएम बने तो उन्हें क्या अनुभव था। अनुभव राजनीति में अपने आप हो जाता है और 15 साल से आदित्य महाराष्ट्र की राजनीति में काम करते हैं। उनकी जन आशीर्वाद यात्रा को पूरे महाराष्ट्र में जबर्दस्त रिस्पॉन्स मिला।

शिवसेना किन किन मुद्दों पर चुनाव लड़ेगी?

पहले सीट शेयरिंग होने दीजिए, फिर मुद्दों की बात करेंगे।

ट्रैफिक नियम उल्लंघन पर भारी पेनल्टी लगाने का नियम क्या महाराष्ट्र में चुनाव की वजह से लागू नहीं किया गया?

देश में बीजेपी शासित राज्यों में भी उसका विरोध हुआ है तो यह चुनाव की वजह से नहीं है।

शिवसेना भी हिंदुत्व की बात करती है। क्या बीजेपी का हिंदुत्व शिवसेना के हिंदुत्व पर भारी पड़ रहा है?

अगर देश में एक से ज्यादा राजनीतिक दल हिंदुत्व की बात करते हैं तो हिंदुत्व मजबूत होता है। हिंदुत्व किसी की बपौती नहीं है। जैसे सेक्युलरिज्म कांग्रेस की बपौती नहीं है। वैसे हिंदुत्व भी किसी की बपौती नहीं है।

नासिक में पीएम मोदी ने कहा था कि राम मंदिर पर बयान देने पर बहादुरों को संयम बरतना चाहिए। कहा जा रहा है कि ये शिवसेना की तरफ इशारा था?

कुछ दिन पहले ही यूपी के एक मंत्री का बयान आया कि राम मंदिर बनेगा और सुप्रीम कोर्ट का फैसला हमारे पक्ष में आएगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट हमारा है। इस प्रकार के बयान अगर कोई मंत्री देता है तो पीएम को उससे तकलीफ होती है, उनको जवाब देना पड़ता है। फिर हमारे चीफ जस्टिस को भी उस पर टिप्पणी करनी पड़ी। मुझे लगता है कि अपनी पार्टी में अनुशासन लाने के लिए पीएम ने यह बयान दिया।


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