शिवसेना महाराष्ट्र में नहीं बनना चाहती जूनियर पार्टनर
मुंबई : छत्रपति शिवाजी महाराज की धरती महाराष्ट्र में कभी भी विधानसभा चुनाव का शंखनाद हो सकता है। विपक्षी कांग्रेस और एनसीपी ने इस चुनावी जंग में जीत हासिल करने के लिए 135-135 सीटों पर लड़ने का ऐलान कर दिया है। विपक्ष की इस घेराबंदी के बीच शिवाजी को आदर्श मानने वाले सत्तारूढ़ गठबंधन में अभी भी सीटों पर सहमति नहीं बन पाई है। सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल शिवसेना जहां 50-50 के फॉर्म्युले (135 सीट) पर सीटों का बंटवारा करना चाहती है, वहीं बीजेपी करीब 160 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। साल 1989 में राम मंदिर आंदोलन तूल पकड़ रहा था और उसी समय शिवसेना ने पहली बार बीजेपी के साथ गठबंधन किया। तब से लेकर दोनों भगवा पार्टियों में शिवसेना ने हमेशा से विधानसभा चुनाव में बीजेपी से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा। हालांकि वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना दोनों ही अलग-अलग चुनाव लड़े थे।
शिवसेना के एक नेता ने ईटी से कहा, 'कांग्रेस लगभग मर चुकी है, एनसीपी भी खत्म है। यदि हम कम सीटों पर चुनाव लड़ने की बीजेपी की धमकी को मान लेते हैं तो चुनाव के बाद ये लोग हमें ही निशाना बनाना शुरू कर देंगे क्योंकि उस समय इनका कोई विरोधी राज्य में बचा नहीं होगा।' शिवसेना के डर का एक और कारण गोवा की महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी का उदाहरण भी है। शिवसेना को डर है कि बीजेपी अपने सहयोगी दल महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) जैसा हश्र उसका भी कर सकती है। शिवसेना के एक नेता ने कहा, 'गोवा में उन्होंने (BJP) महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी का इस्तेमाल करके अपना विस्तार किया वहीं महाराष्ट्र में भी उसने शिवसेना की मदद से अपना विस्तार किया। लेकिन शिवसेना एमजीपी नहीं है।'
गोवा में 1961 में पुर्तगालियों के खात्मे के बाद एमजीपी गोवा की पहली सत्तारूढ़ पार्टी थी और उसने 1963 से 1979 तक शासन किया। एमजीपी को राज्य के हिंदुओं खासतौर पर गैर ब्राह्मणों का समर्थन हासिल था। वर्ष 1994 में पहली बार एमजीपी और बीजेपी ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा। एमजीपी 25 और बीजेपी जूनियर पार्टनर के तौर पर 12 सीटों पर चुनाव लड़ी। यह गठबंधन उसी साल खत्म हो गया लेकिन इसने बीजेपी को एमजीपी के वोट बैंक में सेंध लगाने का मौका दे दिया।
वर्ष 2012 में दोनों दल एक बार फिर से साथ आए लेकिन इस बार बीजेपी सीनियर पार्टनर थी और उसने 28 सीटों पर चुनाव लड़ा। उधर, एमजीपी को मात्र 7 सीटों से संतोष करना पड़ा। जैसे-जैसे बीजेपी गोवा में खड़ी हुई, उसने एमजीपी का वोट बैंक अपने पाले में कर लिया। यही नहीं एमजीपी के बड़ी संख्या में कार्यकर्ता और नेता बीजेपी में चले गए। इसी साल मार्च महीने में एमजीपी के 3 में से 2 विधायकों ने अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर लिया था।
राजस्थान में भी 'सीनियर' पार्टनर कांग्रेस ने हाल ही में अपनी 'जूनियर' पार्टनर बीएसपी के 6 विधायकों को अपनी पार्टी में विलय करा लिया। बीएसपी 12 निर्दलीय विधायकों के साथ राजस्थान में कांग्रेस सरकार को बाहर से समर्थन दे रही थी। 200 विधायकों के सदन में कांग्रेस के 100 विधायक हैं। कांग्रेस के इस कदम पर बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने निशाना साधा है। मायावती ने कांग्रेस को धोखेबाज पार्टी बताया।