कॉल डेटा से साबित छापे के समय नहीं मौजूद थे पुलिसवाले, कोर्ट ने किया बरी
मुंबई : आमतौर पर कॉल डेटा रिकॉर्ड (सीडीआर) का प्रयोग अभियुक्तों को
पकड़ने और उनका दोष सिद्ध करने के लिए किया जाता है। ड्रग्स के एक मामले
में बचाव पक्ष ने पुलिस और अभियुक्त का सीडीआर कोर्ट में पेश किया। दोनों
की इस कॉल रिकॉर्ड से अभियोजन पक्ष का दावा खारिज हो गया। इससे साबित हुआ
कि बांद्रा वेस्ट में जिस जगह पर छापा मारकर आरोपी को पकड़ने की बात कही जा
रही है वहां पर न तो वह पुलिस वाला था न ही आरोपी। कोर्ट के फैसले के बाद
इसे दुर्लभ मामले के रूप में देखा जा रहा है।
बचाव पक्ष की ओर से दिए
गए इस सबूत और अन्य विसंगतियों को स्वीकार करते हुए विशेष नार्कोटिक ड्रग्स
और साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस (एनडीपीएस) अधिनियम अदालत ने हाल ही में विवेक
लुल्ला (43) सहित दो को बरी कर दिया। विवेक लुल्ला और दो अन्य पश्चिमी
उपनगरों में बॉलिवुड हस्तियों को ड्रग्स की आपूर्ति करने के आरोपी थे।
लुल्ला को 22 अगस्त, 2017 को गिरफ्तार किया गया था। सह-अभियुक्त मोहम्मद
शेख को भी दोषी नहीं पाया गया।
अदालत ने कहा, 'अभियोजन पक्ष सही सबूतों
को लेकर कोर्ट में नहीं आया।' अदालत ने लुल्ला के अधिवक्ता अयाज़ खान की
याचिका के बाद दायर की गई सीडीआर पर भरोसा किया। याचिका में कहा गया,
'आरोपी (लुल्ला) के खिलाफ छापेमारी की कहानी ... बिल्कुल भी विश्वसनीय नहीं
है।'
बचाव पक्ष ने कहा कि सहायक निरीक्षक न तो छापे के लिए गए थे और न
ही उनकी उपस्थिति में पंचनामा तैयार किया गया था। अभियोजन पक्ष जिस
छापेमारी की बात कह रहा है वह हुई ही नहीं थी। उन्होंने बताया कि बचाव पक्ष
के चश्मदीद यहां तक कि सेवा प्रदाता के नोडल अधिकारियों, जिनके माध्यम से
सीडीआर की खरीद की गई थी, उनको भी निकाल दिया गया।
एएनसी के अधिकारियों
ने दावा किया था कि लुल्ला की खोज चल रही थी। उसे छापेमारी के बाद
गिरफ्तार किया गया था और पुलिस चौकी ले जाया गया था। यह आरोप लगाया गया था
कि उसके हाथ में रखे एक काले रंग के प्लास्टिक बैग से 1.12 लाख रुपये के 56
ग्राम मीफेड्रोन (एमडी या म्याऊ म्याऊ) जब्त किए गए थे। लेकिन अदालत ने
संदेह जताया। अदालत ने कहा, सिर्फ '56 ग्राम वजन का ड्रग्स प्लास्टिक कैरी
बैग में था और अगर आरोपी के पास बैग होता और उसे बेचने के प्रयास में होता।
वह इसे अपनी जेब में भी छिपा सकता था।'