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मुंबई, नक्सली गढ़ के रूप में चर्चित गढ़चिरोली जिला अब नक्सलमुक्त क्षेत्र होने की राह पर है। महाविकास आघाड़ी सरकार द्वारा बनाए गए पावरफुल सी-६० जवानों की लगातार कार्रवाई के कारण नक्सली दहशत से कांप उठे हैं। परिणामस्वरूप वर्तमान में सिर्फ १४० बंदूकधारी नक्सलियों के यहां सक्रिय होने की विश्वसनीय जानकारी मिली है। यहां तक कि नक्सलियों द्वारा की जानेवाली भर्ती भी अब पूरी तरह से बंद हो चुकी है।
वर्ष १९८० में नक्सली संगठन द्वारा स्थापित ‘पीपल्स वॉर ग्रुप’ का नेतृत्व पहले वरिष्ठ नक्सली नेता गणपति, आजाद, किशन आदि नक्सली नेता करते थे। इनसे आकर्षित होकर स्थानीय युवाओं ने नक्सलियों का दामन थामते हुए पहले आंध्रप्रदेश और वर्तमान के तेलंगाना राज्य से होते हुए पहली बार गढ़चिरोली जिले में प्रवेश किया था। पीड़ित किसानों एवं शोषित मजदूरों को न्याय दिलाने के लिए शुरू किया गया यह आंदोलन आगे चलकर लूटपाट, दहशत पैâलाने एवं विकास कार्य में बाधा डालने में बदल गया।
गढ़चिरोली जिले की स्थापना के बाद से ही पूरे क्षेत्र में नक्सली गतिविधियां बढ़ गर्इं, इस पर प्रतिबंध लगाने के लिए तत्कालीन पुलिस अधीक्षक केपी रघुवंशी ने १ दिसंबर १९९० को सी-६० की स्थापना की। उस वक्त सी-६० में सिर्फ ६० कमांडो थे, जिससे इसे यह नाम मिला। लेकिन गत वर्ष गढ़चिरोली में नक्सलियों के हमले में १५ जवानों की मौत हो गई, जिसके बाद महाविकास आघाड़ी सरकार ने सी-६० टीम को और मजबूत बनाते हुए नक्सलियों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया, इसी का नतीजा है कि एक दौर में हजारों की संख्यावाले इस संगठन में अब मात्र १४० नक्सली बचे हैं। ६५० नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर लिया जबकि २७५ नक्सली मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं। पुलिस विभाग न सिर्फ नक्सल आंदोलन को कुचलने में सफल हुआ है बल्कि आदिवासियों के लिए चलाए जा रहे अभियान भी काफी कारगर साबित हुए हैं, जिसमें आत्मसमर्पण योजना, ग्रामभेंट, नक्सली गांवबंदी, दादालोरा खिड़की आदि योजनाएं काफी अहम साबित हो रहीं हैं।


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