सचिन वझे की पूरी कहानी
मुंबई : महाराष्ट्र पुलिस के 1990 के बैच के सचिन वझे के शुरूआती करियर में लंबे समय तक ठाणे में पोस्टिंग रही। उनकी मराठी के एक बड़े पत्रकार से दोस्ती थी। उस पत्रकार की एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा से भी गहरी फ्रेंडशिप थी। प्रदीप शर्मा उन दिनों अंधेरी क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट (CIU) के प्रभारी हुआ करते थे।
अंधेरी CIU का क्या रुतबा था, इसे इसी से समझा जा सकता है कि राम गोपाल वर्मा ने इस अंधेरी CIU की कार्यप्रणाली पर ‘अब तक छप्पन’फिल्म बनाई थी, जिसमें नाना पाटेकर ने प्रदीप शर्मा का किरदार निभाया था। बहरहाल, जब मराठी के उस पत्रकार ने सचिन वझे की प्रदीप शर्मा से तारीफ की, तो शर्मा ने तब के मुंबई क्राइम ब्रांच चीफ से वझे को अंधेरी CIU में लेने की सिफारिश की।
यह बात खुद उस मराठी पत्रकार ने एक बार बताई थी, जिसकी अब कैंसर से मृत्यु हो चुकी है। उस सिफारिश के कुछ दिनों बाद ही सचिन वझे प्रदीप शर्मा के अंडर में काम करने लगे। प्रदीप शर्मा की तरह उनके नाम के आगे भी एनकाउंटर स्पेशलिस्ट शब्द जुड़ गया। तब तक प्रदीप शर्मा की टीम में पहले से ही एक और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट मौजूद थे—दया नायक। फिल्म 'अब तक छप्पन' में जतिन शुक्ला दया नायक के ही किरदार का नाम है। मुंबई पुलिस में सबसे ज्यादा एनकाउंटर 113 प्रदीप शर्मा ने ही किए हैं। सचिन वझे अक्सर दावा करते रहे हैं कि उन्होंने खुद 60 से ज्यादा एनकाउंटर किए।
सचिन वझे जब अंधेरी CIU में थे, तब उन पर बम ब्लास्ट आरोपी ख्वाजा युनूस की पुलिस कस्टडी में मौत से जुड़ी साजिश रचने का आरोप लगा था। उस केस में वह अरेस्ट भी हुए थे और 14 साल तक पुलिस फोर्स से बाहर रहे थे। पिछले साल ही उनकी पुलिस फोर्स में वापसी हुई और उन्हें फिर से क्राइम इंटलिजेंस यूनिट यानी CIU दे दी गई।
मुकेश अंबानी के घर के बाहर जिलेटिन से भरी स्कॉपियो रखने के आरोप में शनिवार देर रात जब सचिन वझे की गिरफ्तारी हुई, तो संयोग से इस बार भी वह ख्वाजा युनूस केस की तरह CIU में ही थे। एक जमाने में मुंबई पुलिस के पास चार CIU हुआ करती थीं। एक अंधेरी में जिसे प्रदीप शर्मा लीड करते थे। दूसरी CIU घाटकोपर में थी, जिसे एक और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रफुल्ल भोंसले लीड करते थे। इसके अलावा दो CIU मुंबई पुलिस मुख्यालय में थीं।
ये सभी CIU मुंबई पुलिस की उसी तरह ऑपरेशन यूनिट्स थीं, जिस तरह दिल्ली पुलिस का स्पेशल सेल और यूपी पुलिस का एसटीएफ था। बाद में बाकी सारी CIU के ऑफिस बंद कर दिए गए। सिर्फ पुलिस मुख्यालय में एक CIU बरकरार रखी गई। सचिन वझे को इसी इकलौती CIU का पिछले साल प्रभारी बनाया गया।
इसी CIU में रहते हुए सचिन वझे तब सुर्खियों में आए, जब फर्जी टीआरपी केस का उन्होंने खुद इनवेस्टिगेशन किया और अपनी जांच को वह रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अरनब गोस्वामी तक ले गए। इस केस में उन्होंने दो चार्जशीट भी दाखिल की। रितिक रोशन-कंगना रनौत से जुड़ा ई-मेल का करीब सात साल पुराना केस भी करीब तीन महीने पहले साइबर पुलिस स्टेशन से CIU को ट्रांसफर हुआ था, जिसमें पिछले महीने ही सचिन वझे ने रितिक रोशन का स्टेटमेंट लिया था।
ऐसा कहा जाता है कि सचिन वझे कुछ हाई-प्रोफाइल केसों के डिटेक्शन की वजह से महाराष्ट्र सरकार में कुछ बड़े नेताओं के इतने करीबी हो गए थे कि उन्हें मुंबई पुलिस का नहीं, महाराष्ट्र सरकार में एक बड़े राजनेता का OSD यानी ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी कहा जाता था। मुंबई पुलिस में कई लोगों को कहना है कि इसी में सचिन वझे खुद को इतना ताकतवर समझने लगे थे कि कुछ केसों में वह पुलिस के अपने बॉस को नहीं, महाराष्ट्र में सीधे एक बड़े नेता को अपडेट देते थे।
मुकेश अंबानी के घर के बाहर जिलेटिन वाली स्कॉर्पियो कार मामले में मुंबई पुलिस में काफी लोगों को आश्चर्य है कि यह केस शुरूआत में सचिन वझे को ही जांच के लिए किसके कहने पर दिया गया। भारत के इतिहास में बिरले ही केस होंगे, जिसमें जो मुख्य आरोपी है, वही इस केस की शुरूआत में इनवेस्टिगेशन कर रहा था।
मुंबई क्राइम ब्रांच के एक अधिकारी के अनुसार, यह केस पहले ही दिन से महाराष्ट्र एटीएस के पास जाना चाहिए था, क्योंकि जिलेटिन मिलने की वजह से एक तो इस केस का टेरर एंगल से इनवेस्टिगेशन जरूरी था। दूसरे, तमाम सीसीटीवी फुटेज से यह साबित हो गया था, कि स्कॉर्पियो गाड़ी और उसके साथ आई इनोवा गाड़ी ठाणे से एक साथ निकली थीं। इनोवा वापसी में ठाणे के रास्ते ही गायब हुई। मतलब इस केस की जांच का दायरा मुंबई के अलावा ठाणे भी था।
जब इनोवा की बात आई, तो बताना जरूरी है कि शनिवार रात मुंबई में एनआईए परिसर में एक इनोवा गाड़ी खड़ी देखी गई, जिसे आगे-पीछे से सर्च किया जा रहा था। इस पर पुलिस लिखा पाया गया। माना जा रहा है कि शायद यही वह इनोवा गाड़ी है, जिससे 25 फरवरी को स्कॉर्पियो वाला आरोपी बैठकर भागा था।
सचिन वझे से जुड़े इस केस में कई चौंकानेवाले खुलासे और दावे किए जा रहे हैं। जैसे, जो स्कॉर्पियो गाड़ी 25 फरवरी को मुकेश अंबानी के घर के बाहर छोड़ी गई, कहा जा रहा है कि जब अरनब गोस्वामी को गत नवंबर में अनवय नाईक खुदकुशी केस में गिरफ्तार किया गया था, तब सचिन वझे इसी स्कॉर्पियो को ड्राइव कर अलीबाग तक गए थे।
अनवय नाईक खुदकुशी केस रायगढ़ पुलिस का केस था, लेकिन अरनब को लोअर परेल में गिरफ्तार करने गई टीम में सचिन वझे भी थे। खुद हिरेन मनसुख, जिनकी यह स्कॉर्पियो थी और जिनकी हत्या कर दी गई , उनकी पत्नी का भी दावा है कि यह स्कॉर्पियो सचिन वझे के पास गत नवंबर से इस साल 5 फरवरी तक थी। यह स्कॉर्पियो 17-18 फरवरी की रात विक्रोली पुलिस स्टेशन के ज्यूरिडिक्शन से चुराई गई थी और 25 फरवरी को मुकेश अंबानी के घर के बाहर खड़ी की गई।
ठाणे सेशन कोर्ट में जब सचिन वझे ने गुरुवार को अग्रिम जमानत की अर्जी दी और जिस पर एटीएस ने सबूत रखे, तो पता चला कि 27 और 28 फरवरी को हिरेन मनसुख के साथ ही सचिन वझे थे। हिरेन मनसुख की पत्नी का यह भी आरोप है कि सचिन वझे ने ही हिरेन मनसुख को वह पत्र लिखने को कहा था, जिसमें कुछ पुलिस वालों और पत्रकारों पर प्रताड़ना के आरोप लगाए गए थे। जिस वकील ने इस पत्र का ड्राफ्ट किया था, उसने भी सचिन वझे का नाम लिया कि उन्होंने ही हिरेन मनसुख को उनके पास भेजा था।
एटीएस ने इस वकील का स्टेटमेंट भी लिया है। यहां महत्वपूर्ण यह है कि सचिन वझे की गिरफ्तारी एनआईए ने मुकेश अंबानी के घर के बाहर स्कॉर्पियो में जिलेटिन प्लांट करने के केस में की है। उन पर एनआईए ने आईपीसी के सेक्शन 286, 465, 473, 506 (2), 120 बी और एक्सपलोसिव ऐक्ट के सेक्शन 4 (a) (b) (I) लगाए हैं।
उनकी गिरफ्तारी अभी हिरेन मनसुख मर्डर केस में नहीं हुई है। उस केस का एनआईए नहीं, महाराष्ट्र एटीएस इनवेस्टिगेशन कर रही है। उस केस में हिरेन मनसुख की पत्नी ने एटीएस की कालाचौकी यूनिट में एफआईआर दर्ज कराई है, जिसमें अपने पति के मर्डर होने का अंदेशा व्यक्त किया गया है और प्राइम सस्पेक्ट के तौर पर सचिन वझे का नाम लिया गया है।
पर पूरे केस में अभी भी एक पेच है। 25 फरवरी को मुकेश अंबानी के घर के बाहर स्कॉर्पियो में जिलेटिन मिलने के दो दिन बाद एक मैसेज जैश उल हिंद के नाम से आया, जिसमें उस स्कॉर्पियो में इस आतंकवादी संगठन ने जिलेटिन रखने का दावा किया था। हालांकि कुछ घंटे बाद जैश उल हिंद के नाम से एक और मैसेज आया और खुद को असल जैश उल हिंद बताने वाले ने दावा किया कि उनके संगठन के नाम से भेजा गया मैसेज फर्जी है। साथ ही कहा कि मुकेश अंबानी के घर के बाहर उसके आतंकवादी संगठन ने कोई स्कॉर्पियो नहीं खड़ी की, कोई जिलेटिन नहीं रखा।
लेकिन 11 मार्च को मुंबई पुलिस की टिप पर दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने तिहाड़ जेल में रेड डाली और वहां से इंडियन मुजाहिदीन से जुड़े तहसीन अख्तर के पास से कुछ मोबाइल जब्त किए। आरोप लगा कि इन्हीं मोबाइल में से किसी एक से जैश उल हिंद वाला मैसेज किया गया था। सवाल यह है कि जब सचिन वझे को स्कॉर्पियो में जिलेटिन प्लांट करने के मामले में अरेस्ट किया गया है, तो उसी केस में जैश उल हिंद वाला पेच अभी तक क्यों नहीं सुलझा है। शायद आने वाले दिनों में इस रहस्य से भी पर्दा उठेगा।