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नई दिल्ली : निर्भया के दोषियों को फांसी कब होगी, यह सवाल अब भी कायम है। दरअसल, दोषियों के पास अभी भी कानूनी उपचार बचे हुए हैं और इस उपचार का इस्तेमाल वो कितने दिन में करेंगे, इसके लिए कानून में कोई तय सीमा नहीं है, इसी कारण फांसी का फंदा उलझा हुआ है। कानूनी जानकार बताते हैं कि क्यूरेटिव पिटिशन और दया याचिका दायर करने के लिए कोई समय सीमा नहीं है। यही कारण है कि अभी तक इस मामले में क्यूरेटिव पिटिशन और दया याचिका का विकल्प बचा है।

इस केस के तीन दोषियों की रिव्यू पिटिशन जुलाई 2018 में ही खारिज हो गई थी। चौथे की याचिका पिछले महीने खारिज हुई है। जानकारों के मुताबिक, इस मामले में सभी की दया याचिका खारिज होने के बाद आखिरी इंसाफ होगा। अपील, विशेष अनुमति याचिका और रिव्यू के लिए भी समय सीमा : सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट एमएल लाहोटी का कहना है कि निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देने के लिए और सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल करने के लिए समय सीमा तय है। क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करने के लिए कोई समयसीमा नहीं है। न ही दया याचिका दाखिल करने के लिए कोई समय सीमा तय की गई है।

निर्भया केस में 9 जुलाई 2018 को तीन मुजरिमों की रिव्यू पिटिशन खारिज कर दी गई थी। इसके बाद तीनों ने क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल नहीं कीं। फिर 2019 में चौथे मुजरिम अक्षय ने रिव्यू पिटिशन दाखिल कर दी। उसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया। लाहोटी बताते हैं कि निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने के लिए दो महीने का वक्त होता है, यानी हाई कोर्ट में दो महीने के भीतर अपील दाखिल करनी होती है।

हाई कोर्ट से भी अर्जी खारिज हो जाए तो सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर करने के लिए तीन महीने का वक्त निर्धारित है। सुप्रीम कोर्ट से भी अर्जी खारिज हो जाए तो रिव्यू पिटिशन के लिए एक महीने का वक्त होता है। रिव्यू खारिज होने के बाद क्यूरेटिव पिटिशन के लिए कोई समय सीमा नहीं है।


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