महाराष्ट्र में 6 साल में 102% बढ़े डायबीटीज के मरीज
मुंबई : नॉन कम्युनिकेबल बीमारियों में डायबीटीज की समस्या विकराल होती जा रही है। आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 6 साल में डायबीटीज के मरीजों की संख्या में 102 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। हालांकि प्रशासन का दावा है कि स्क्रीनिंग की सुविधा बढ़ने के कारण मामलों में बढ़ोतरी दिख रही है। राज्य स्वास्थ्य निदेशालय के आंकड़े बताते हैं कि 2013-14 में राज्य में डायबीटीज के मरीजों की संख्या 79,815 थी, जो 2018-19 में 102 प्रतिशत बढ़कर 1,62,010 हो गई। वर्तमान में महाराष्ट्र में 7.62 लाख डायबीटीज मरीज हैं। डॉक्टरों के अनुसार, पिछले कुछ सालों में यह समस्या तेजी से बढ़ी है, जिसका कारण मोटापा और जीवनशैली में बदलाव है। विशेषज्ञों का कहना है कि देश के लिए नॉन कम्युनिकेबल बीमारियां एक बड़ी चुनौती है। 2017 में इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च की एक स्टडी में भी देश के लिए नॉन कम्युनिकेबल बीमारियों की चुनौती को रेखांकित किया गया था।
मुंबई में प्रैक्टिस करने वाले डायबीटीज रोग विशेषज्ञ डॉ. तेजस शाह ने बताया कि पिछले 10 साल में डायबीटीज की समस्या तेजी से बढ़ी है। पहले यह बीमारी सामान्यत: 50 की उम्र के बाद दिखती थी, लेकिन अब 30 से भी कम उम्र के लोगों में दिख रही है। वहीं, बच्चों में टाइप 2 के मामले भी काफी अधिक दिखने लगे हैं। मोटापा रोग विशेषज्ञ डॉ. मनीष मोटवानी के अनुसार, डायबीटीज के कारणों में बढ़ता वजन एक खतरनाक कारण है। इससे ज्यादातर आबादी परेशान है। डायबीटीज शरीर के कई अंगों पर असर डालती है, जिनमें, किडनी, हार्ट, आंख सहित कई दूसरे महत्वपूर्ण अंग शामिल हैं। समस्या से छुटकारा पाने के लिए न केवल शुरुआती स्तर पर जांच करने की जरूरत है, बल्कि जीवनशैली सुधारना भी अहम है। आंकड़ों के अनुसार, हर साल डायबीटीज के मरीज बढ़ रहे हैं। 2013-14 में 79,815 मरीज थे, जो 2014-15 में थोड़े कम होकर 62,092 हो गए। हालांकि 2015-16 में फिर से मरीजों की संख्या 84,849 हो गई, जबकि 2018-19 में 1,62,010 नए मरीजों का पंजीकरण किया गया। डायबीटीज रोग विशेषज्ञ डॉ. शशांक जोशी ने कहा कि मरीज बढ़ रहे हैं, इसमें दोराय नहीं, लेकिन पहले की तुलना में स्क्रीनिंग भी अब काफी बढ़ गई है। इस कारण अधिक मरीजों में इसकी पहचान हो रही है। महाराष्ट्र स्वास्थ्य निदेशालय के एक अधिकारी ने बताया कि आंकड़े बढ़े नहीं हैं, बल्कि रेकॉर्ड पर आ रहे हैं। हमने 'पॉप्युलेशन बेस्ड स्क्रीनिंग' की शुरुआत की है, जिसके तहत आशा कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों को बीमारी के बारे में जागरूक करती हैं और जांच के लिए आगे आने को प्रेरित करती हैं। 2013-14 में 27 लाख लोगों की जांच इस बीमारी के लिए हुई थी, वहीं 2018-19 में कुल 1.14 करोड़ लोगों की जांच हुई। अब तक 4 करोड़ से अधिक लोगों की जांच की जा चुकी है। इनमें से 7.62 लाख लोगों में डायबीटीज की पुष्टि हुई है। ज्यादातर लोगों का इलाज जारी है।