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मुंबई : मुंबई के गोरेगांव में एक तीन साल का बच्चा रात खुले हुए गटर में गिर गया। उसके बाद से शुरू हुए तलाशी अभियान में बच्चे का कोई पता नहीं चला लेकिन देश की सबसे अमीर नगर पालिका की पोल खुल गई है। बृह्नमुंबई महानगरपालिका में खुले हुए नालों और नालियों को बंद करने को लेकर कोई नीति नहीं है। हजारों करोड़ रुपये की कोस्टल रोड बनाने वाली बीएमसी मुंबई की सबसे मूलभूत समस्या का समाधान निकालने में असमर्थ है जिससे राहगीरों की सुरक्षा पर हमेशा एक खतरा बना रहता है। शहर में 260 किमी बड़े और 465 किमी छोटे नाले हैं। इनके अलावा कई सौ किलोमीटर लंबी सड़कों के किनारे नालियां हैं। आइलैंड सिटी में ज्यादातर नाले ढके हुए हैं और सड़क के बीच से निकलते हैं जबकि उपनगर में ये खुले हैं और सड़क के किनारे फुटपाथ के पास से निकलते हैं। 

सड़क के किनारे बने नाले सबसे खतरनाक होते हैं क्योंकि वहां चलते वक्त हमेशा इन पर नजर रखनी पड़ती है। यहां तक कि पुराने हादसों से भी बीएमसी ने कुछ नहीं सीखा है। अगस्त 2017 में भारी बारिश के दौरान कमर तक भरे पानी में चल रहे सीनियर गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजिस्ट डॉ दीपक अमरापुरकर लोउर परेल के एक खुले हुए मैनहोल में गिर गए थे। उनका शव दो दिन बाद वर्ली के पास मिला था। 

निकाय अधिकारियों का कहना है कि नालियों को ढके रखने को लेकर कोई नीति नहीं है। हालांकि, नालों को ढका जाता है ताकि उनके ऊपर फुटपाथ बन सके और लोग उसमें कचरा डालकर उसे जाम न कर सकें। एक अधिकारी ने बताया कि नाले को ढकने से दो तरह की परेशानियां होती हैं। एक तो उसे साफ करना मुश्किल हो जाता है और दूसरा भारी बारिश के दौरान पानी को निकालना मुश्किल हो जाता है। अधिकारी का कहना है कि जालीदार ढक्कन तकनीकी रूप से कारगर नहीं होते हैं।  करीब चार महीने पहले बीएमसी प्रशासन ने पॉलीकार्बोनेटशीट से नालों को ढकने का प्रस्ताव बनाया था ताकि लोग उससे कचरा न फेंक सकें लेकिन स्टैंडिंग कमिटी को वह सही नहीं लगा। प्रशासन से बेहतर प्लान बनाने के लिए कहा गया है लेकिन उस पर काम शुरू नहीं हुआ है। 


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